मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर का सच
मथुरा का इतिहास
मथुरा भारत का प्राचीन नगर है । यहां पर 500 ईसा पूर्व के प्राचीन अवशेष मिले हैं, जिससे इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है । उस काल में शूरसेन देश की ये राजधानी हुआ करती थी । पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि । उग्रसेन और कंस मथुरा के शासक थे जिस पर अंधकों के उत्तराधिकारी राज्य करते थे ।
मथुरा यमुना नदी के तट पर बसा एक मनमोहक सुंदर शहर है । मथुरा जिला उत्तर प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित है । इसके पूर्व में जिला एटा, उत्तर में जिला अलीगढ़, दक्षिण-पूर्व में जिला आगरा, दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान एवं पश्चिम उत्तर में हरियाणा राज्य स्थित हैं । मथुरा, आगरा मंडल का उत्तर-पश्चिमी जिला है । मथुरा जिले में चार तहसीलें हैं- मांट, छाता, महावन, और मथुरा तथा विकास खण्ड हैं- नंदगांव, छाता, चौमुहां, गोवर्धन, मथुरा, फरह, नौहझील, मांट, राया और बलदेव हैं ।
श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था । पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी । दोनों को ही कंस ने कारागार में डाल दिया था । उस काल में मथुरा का राजा कंस था, जो श्रीकृष्ण का मामा था । कंस को आकाशवाणी द्वारा पता चला कि उसकी मृत्यु उसी की बहन देवकी की आठवीं संतान के हाथों होगी । इसी डर के चलते कंस ने अपनी बहन और जीजा को आजीवन कारागार में डाल दिया था ।
मथुरा का इतिहास
जिस जगह पर आज श्रीकृष्ण जन्मस्थान है, वह पांच हजार साल पहले मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव में राजा कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था । ऐसा दावा इतिहासकार डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने किया है । कई साक्ष्यों के मिलने और गहन अध्ययन के बाद कृष्णदत्त वाजपेयी ने इस बात का जिक्र किया कि श्रीकृष्ण का असली जन्मस्थान कटरा केशव देव ही है । उन्होंने इससे जुड़े कई पहलूओं का जिक्र अपनी पुस्तक मथुरा में किया है ।
कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने बनवाया था पहला मंदिर
मान्यता के अनुसार, कारागार के पास सबसे पहले भगवान कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की स्मृति में एक मंदिर बनवाया था । विशेषज्ञों का मानना है कि यहां से मिले शिलालेखों पर ब्राहम्मी-लिपि में लिखा हुआ है । इससे यह पता चलता है कि यहां शोडास के राज्य काल में वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर, उसके तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था ।
विक्रमादित्य ने बनवाया था दूसरा बड़ा मंदिर
इतिहासकारों का मानना है कि सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में दूसरा मंदिर 400 ईसवी में बनवाया गया था । यह भव्य मंदिर था । उस समय मथुरा संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हुआ था । इसका वर्णन भारत यात्रा पर आए चीनी यात्रियों फाह्यान और ह्वेनसांग ने भी किया है
जन्मभूमि का इतिहास
जिस जगह पर आज श्रीकृष्ण जन्मस्थान है, वह पांच हजार साल पहले मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव में राजा कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था । ऐसा दावा इतिहासकार डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने किया है । कई साक्ष्यों के मिलने और गहन अध्ययन के बाद कृष्णदत्त वाजपेयी ने इस बात का जिक्र किया कि श्रीकृष्ण का असली जन्मस्थान कटरा केशव देव ही है । उन्होंने इससे जुड़े कई पहलूओं का जिक्र अपनी पुस्तक मथुरा में किया है ।
कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने बनवाया था पहला मंदिर
मान्यता के अनुसार, कारागार के पास सबसे पहले भगवान कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की स्मृति में एक मंदिर बनवाया था । विशेषज्ञों का मानना है कि यहां से मिले शिलालेखों पर ब्राहम्मी-लिपि में लिखा हुआ है । इससे यह पता चलता है कि यहां शोडास के राज्य काल में वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर, उसके तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था ।
विक्रमादित्य ने बनवाया था दूसरा बड़ा मंदिर
इतिहासकारों का मानना है कि सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में दूसरा मंदिर 400 ईसवी में बनवाया गया था । यह भव्य मंदिर था । उस समय मथुरा संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हुआ था । इसका वर्णन भारत यात्रा पर आए चीनी यात्रियों फाह्यान और ह्वेनसांग ने भी किया है
आस-पास बौद्ध आस्था का भी केंद्र बना
इस दौरान मथुरा के आसपास बौद्धों और जैनियों के भी विहार और मंदिर भी बने । इन निर्माणों के प्राप्त अवशेषों से यह पता चलता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान उस समय बौद्धों और जैनियों के लिए भी आस्था का केंद्र रहा था ।
महमूद गजनवी ने तुड़वा दिया मंदिर
विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए इस मंदिर को ई. सन् 1017-18 में महमूद गजनवी ने कृष्ण मंदिर सहित मथुरा के समस्त मंदिर तुड़वा दिए थे, लेकिन उसके लौटते ही मंदिर बन गए । गजनवी के मीर मुंशी अल उत्वी ने अपनी पुस्तक तारीखे यामिनी में लिखा है कि गजनवी ने मंदिर की भव्यता देखकर कहा था कि इस मंदिर के बारे में शब्दों या चित्रों से बखान करना नामुमकिन है । उसका अनुमान था कि वैसा भव्य मंदिर बनाने में दस करोड़ दीनार खर्च करने होंगे और इसमें दो सौ साल लगेंगे ।
विजयपाल देव के शासनकाल में बना तीसरा बड़ा मंदिर
खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से पता चलता है कि 1150 ई. में राजा विजयपाल देव के शासनकाल के दौरान जज्ज नाम के एक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नया मंदिर बनवाया था । उसने विशाल और भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर को 16वीं शताब्दी की शुरुआत में सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर दिया गया था।
अकबर की सेना पहुंची मथुरा को नष्ट करने
मथुरा के चौबे की हवेली के पास ही खडंहर था, भगवान कृष्ण जन्मभूमि का । ये पूरा इलाका कटरा केशवदेव कहलाता था । हिंदू तीर्थयात्री आते थे । श्रद्धालु प्रतिदिन खंडहर की परिक्रमा-पूजा करते थे । बाद में जब बंगाल विजय करके मानसिंह लौटा तो अकबर ने मानसिंह को मथुरा और वृंदावन का क्षेत्र सौंप दिया । जब चौबे ने जन्मभूमि पर एक चबूतरा बना दिया तो लोग आने लगे और धीर-धीरे चौबे के समर्थक बढ़ गए । शहर काजी ने इसकी शिकायत अकबर से की । अकबर की सेना मथुरा पहुंच गई तो सभी गुर्जर, जाट, अहीर, गडरिये और राजपूत एक हो गए । कछवाहा सरदार ने संदेश भेजा कि यदि एक भी हिंदू को हाथ लगाया तो सभी की कब्रें यही बना देंगे । मुगल सेना लौट गई । बाद में अकबर ने चौबे का कत्ल करवा दिया ।
जहांगीर के शासनकाल में चौथी बार बना मंदिर
इसके लगभग 125 वर्षों बाद जहांगीर के शासनकाल के दौरान ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया । इसके संबंध में कहा जाता है ये इतना ऊंचा और विशाल था कि ये आगरा से भी दिखाई देता था ।
भव्य था बुंदेला का मंदिर
फ्रांसीसी यात्री टैबरनियर 17वीं सदी में भारत आया था और उसने अपने वृत्तांतों में मंदिर की भव्यता का जिक्र किया है । इतालवी सैलानी मनूची के अनुसार केशवदेव मंदिर का स्वर्णाच्छादित शिखर इतना ऊंचा था कि दीपावली की रात उस पर जले दीपकों का प्रकाश 18 कोस दूर स्थित आगरा से भी दिखता था ।
औरंगजेब ने तुड़वाया मंदिर
मुगल शासक औरंगजेब ने सन् 1669 ई. में केशवदेव मंदिर को ध्वस्त करके इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवा दी गई, जो कि आज भी विद्यमान है । कहा जाता है कि इस मंदिर की भव्यता से ही चिढ़कर औरंगजेब ने सन् 1669 में इसे तुड़वाया था और इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया । यहां प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि इस मंदिर के चारों ओर एक ऊंची दीवार का परकोटा मौजूद था । मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया गया था । इस कुएं से पानी 60 फीट की ऊंचाई तक ले जाकर मंदिर के प्रांगण में बने फव्वारे को चलाया जाता था । इस स्थान पर उस कुएं और बुर्ज के अवशेष अभी तक मौजूद है । अब ये विवादित क्षेत्र बन चुका है क्योंकि जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर है ।अब उसी ईदगाह की दीवारों पर मंदिर की कलाकृतियां देखी जा सकती हैं ।
बिड़ला ने की श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना
ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीद लिया । वर्ष 1940 में जब यहां पंडित मदन मोहन मालवीय आए, तो श्रीकृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा देखकर वे काफी निराश हुए । इसके तीन वर्ष बाद 1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए और वे भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर बड़े दुखी हुए । इसी दौरान मालवीय जी ने बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पुनर्रुद्धार को लेकर एक पत्र लिखा । बिड़ला ने भी उन्हें जवाब में इस स्थान को लेकर हुए दर्द को लिख भेजा। मालवीय की इच्छा का सम्मान करते हुए बिड़ला ने सात फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया । इससे पहले कि वे कुछ कर पाते मालवीय का देहांत हो गया । उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की ।
1982 में पूरा हुआ वर्तमान मंदिर का निर्माण कार्य
ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल कर दी। इसका फैसला 1953 में आया। इसके बाद ही यहां कुछ निर्माण कार्य शुरू हो सका। यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ ।
क्या है विवाद ?
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद का यह पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक को लेकर है । इस जमीन के 11 एकड़ में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर है तो बाकी बचे 2.37 एकड़ में शाही ईदगाह मस्जिद बनी है । हिंदू पक्ष का दावा है कि पूरी जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर की है और पूरी जमीन उन्हें देने की मांग कर रहा है । वहीं मुस्लिम पक्ष इस दावे से इनकार कर रहा है । जानकार दावा करते हैं कि इस विवाद का इतिहास 350 साल पुराना है । साल 1669 में जब दिल्ली में मुगल शासक औरंगजेब का शासन था, उसी दौरान ठाकुर केशव देव मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर शाही ईदगाह मस्जिद बनवाई गई थी । मस्जिद के निर्माण में मंदिर के ही अवशेषों का इस्तेमाल किया गया था । यही वजह है मस्जिद में सनातन धर्म के प्रतीक होने का दावा किया जा रहा है ।
नमाज के विरोध में याचिका
मथुरा अदालत में विवादित शाही ईदगाह मस्जिद में होने वाली नमाज के विरोध में याचिक दाखिल करते हुए रोक की मांग की गई थी । ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के परिसर में स्थित है । इसके साथ ही ईदगाह मस्जिद के बगल से जाने वाली सड़क पर भी नमाज पढ़ने से रोकने की मांग की गई । याचिका में साल 1920 में चले एक मुकदमे का हवाला भी दिया गया है, जिसमें न्यायालय के फैसले में स्पष्ट रूप से ईदगाह की इस भूमि को हिंदुओं की बताई गई है । याचिका के मुताबित, अभी भी ईदगाह मस्जिद की दीवारों पर ऊं, शेषनाग, स्वास्तिक जैसे हिंदुओं के धार्मिक चिन्ह मौजूद है ।
याचिका में हिंदू पक्ष ने क्या दावा किया ?
ये याचिका भगवान श्री कृष्ण विराजमान और विख्यात कथा वाचक श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज समेत सात अन्य लोगों द्वारा अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, प्रभाष पांडे के जरिए दायर की गई थी । जिसमें दावा किया गया कि भगवान कृष्ण की जन्मस्थली उस मस्जिद के नीचे मौजूद है और ऐसे कई संकेत हैं जो ये साबित करते हैं कि वह मस्जिद एक हिंदू मंदिर है । अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के मुताबिक, इस याचिका में कहा गया है कि वहां कमल के आकार का एक स्तंभ है जो कि हिंदू मंदिरों की एक विशेषता है ।इसमें ये भी कहा गया है कि वहां शेषनाग की एक प्रतिकृति है जो हिदू देवताओं में से एक हैं और जिन्होंने जन्म की रात भगवान कृष्ण की रक्षा की थी । याचिका में ये भी बताया गया कि मस्जिद के स्तंभ के आधार पर हिंदू धार्मिक प्रतीक हैं और नक्काशी में ये साफ दिखते हैं ।
क्या है मांग ?
मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के दायरे में आती है. कानून के अनुसार, किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाने और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने के लिए प्रदान करने के लिए एक अधिनियम, जैसा कि अगस्त 1947 के 15 वें दिन मौजूद था, और उससे जुड़े या प्रासंगिक मामलों के लिए.”इस मामले में अब तक 13 मुकदमे विभिन्न अदालतों में दाखिल हुए थे, जिनमें दो मुकदमे खारिज भी हो चुके हैं। हिंदू पक्ष इस कानून का शुरू से विरोध कर रहा है और इसे अप्रासंगिक बता रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद अहम फैसला सुनाते हुए हिंदू पक्ष की याचिका पर सर्वे की मंजूरी दे दी। विवादित परिसर का सर्वेक्षण एडवोकेट कमिश्नर से कराए जाने की मांग हाईकोर्ट ने मंजूर की… कथा वाचक श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया…उन्होने कहा कि “ये सभी सनातनियों की विजय है…जिन्होंने पूर्व काल में कुछ लोगों ने सनातन की भावनाओं को, सनातन को मिटाने का प्रयास किया था…उन्हें अब सुधारने का समय आ गया है…साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि ये बड़े दुख की बात है कि हमारे देश में 100 करोड़ सनातनी है, वहां उनके आराध्य राम, कृष्ण और शिव और जिनके पूजते-पूजते हमारे पूर्वज और न जाने कितने लोग उनमें आस्था रखते हैं उन्हीं देवालयों को तोड़कर, अपमानित करने का प्रयास धूर्तों ने किया… बाहरी आक्रांताओं ने आकर हमारे आराध्य के मंदिरों को तहस-नहस कर दिया..मथुरा के मंदिर बनने का सपना साकार होगा..इस मंदिर को हम सब मिलकर बनाएंगे। अब धीरे-धीरे सनातनी जाग रहा है. अब राम मंदिर बन गया है, मंदिर में भगवान श्रीराम मंदिर में विराज चुके हैं. अब भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि का ईदगाह मस्जिद है. उसकी भी जांच का सर्वे का ऑर्डर हाईकोर्ट ने दे दिया है. इसका मतलब एक और कदम सनातन की विजय के लिए बढ़ गए हैं. ये शुरुआत है अभी और जो सनातन के लिए एक विजय पथ साबित होगा”
चर्चा में आया जामा मस्जिद विवाद
मथुरा में शाही ईदगाह के बीच आगरा किला के नजदीक बनी जामा मस्जिद आजकल चर्चा में है… कथा वाचक श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने औरंगजेब द्वारा केशवदेव मंदिर को तुड़वाने के बाद उसमें विराजमान रत्नजड़ित देव विग्रहों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाने का दावा किया है । उन्होंने मस्जिद की सीढ़ियां तुड़वाने और देव विग्रहों को निकालकर मंदिर केशवदेव जी कटरा को सुपुर्द करने की मांग की है । मथुरा के अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने भी वाचक श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के दावों का समर्थन किया है।
मूर्तियों को निकालने के लिए डाली है याचिका
श्री कृष्ण जन्म भूमि सेवा ट्रस्ट एवं अन्य बनाम इंतजामिया कमेटी शाही जामा मस्जिद एवं अन्य के मामले में कथा वाचक ठाकुर देवकीनंदन व श्रीकृष्ण जन्म भूमि संरक्षित सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष मनोज पांडेय, सचिव पीयूष गर्ग, एवं कोषाध्यक्ष कृष्ण शर्मा द्वारा संयुक्त रूप से आगरा की शाही जामा मस्जिद की सीढ़ियों में केशव देव मंदिर मथुरा के श्रीकृष्ण विग्रह दबे होने और वहां से उनकी निकासी के आदेश देने के बाबत सिविल वाद प्रस्तुत किया गया है । लघुवाद न्यायाधीश की अदालत में लंबित मामले में श्रीकृष्ण जन्मस्थान, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ, इंतजामिया कमेटी शाही मस्जिद आदि को प्रतिवादी बनाया गया है । दरअसल, इसमें ट्रस्ट की ओर से दावा किया गया है कि आगरा के जामा मस्जिद की सीढ़ियों में भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह दबे हैं.
जामा मस्जिद की सीढ़ियां खुदवाने की मांग
वाचक श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज द्वारा कोर्ट में दायर याचिका में दावा किया गया है कि मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे मथुरा के केशवदेव मंदिर को तोड़कर लाई गई मूर्तियां दबाई गई हैं। ट्रस्ट ने कोर्ट से मांग की है कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों को खुदवाकर उनके नीचे से भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह और मूर्तियों को निकाला जाए। कथावाचक देवकी नंदन जी महाराज द्वारा 11 मई 2023 को दायर इस याचिका की तीन सुनवाई हो चुकी है.
जामा मस्जिद शहजहां की बेटी ने बनवाई थी
जामा मस्जिद शाहजहां की बेटी जहांआरा ने बनवाई थी। अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने यूनियन आफ इंडिया बजरिये केंद्रीय सचिव दिल्ली, महानिदेशक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ), अधीक्षण पुरातत्वविद आगरा सर्किल एएसआइ और निदेशक एएसआइ मथुरा को नोटिस भेजा । उन्होंने नोटिस में कहा है कि औरंगजेब ने वर्ष 1669 में केशवदेव के भव्य मंदिर को तोड़ा । मंदिर में स्थापित केशवदेव के कीमती रत्नजड़ित छोटे व बड़े विग्रहों को जामा मस्जिद आगरा ले गया । देव विग्रहों को बेगम साहिबा जिसे कुदशिया बेगम की मस्जिद जामा मस्जिद भी कहते हैं की सीढ़ियों के नीचे दबा दिया। उन्होंने अपने दावे के समर्थन में इतिहासकारों की कई पुस्तकों का जिक्र किया है ।
आगरा में जहांआरा ने बनवाई थी जामा मस्जिद
इतिहासविद् राजकिशोर राजे कहते हैं कि बेगम साहिबा की मस्जिद आगरा में जहांआरा द्वारा बनवाई गई जामा मस्जिद ही है । जहांआरा शाहजहां की बेटी और औरंगजेब की बड़ी बहन थी । इतिहासकार आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने “मुगलकालीन भारत” में लिखा है कि औरंगजेब के समय में काशी में विश्वनाथ और मथुरा में केशवदेव मंदिर ढहा दिए गए। देश के कोने-कोने में तीर्थ स्थानों के विध्वंस से हिंदुओं में आतंक छा गया । मूर्तियों को तोड़कर गाड़ियों में भरकर दिल्ली व आगरा लाया गया । उन्हें दिल्ली, आगरा व अन्य शहरों की जामा मस्जिदों की सीढ़ियों के नीचे दबा दिया गया ।
इतिहास की पुस्तकों में मिलती है झलक
इतिहासकार एसआर शर्मा ने “भारत में मुगल साम्राज्य” में लिखा है कि औरंगजेब के कट्टर कार्यों की झलक उसके प्रशंसक इतिहासकारों की पुस्तकों में मिलती है। “मआसिर-ए-आलमगीरी” में लिखा है कि मंदिरों की मूर्तियों को आगरा मंगवाया गया और बेगम साहिबा की मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे रखा गया ।